Wednesday 23 July 2014

प्रैस विज्ञप्ति 24 जुलाई, 2014


अलकनंदागंगा में मलबाः नया पुल बहा

17 जुलाई को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में विष्णुप्रयाग बांध कंपनी द्वारा अलकनंदानदी में मलबा डालने पर रोक वाले केस की सुनवाई थी। प्रार्थी की ओर से वकील राहुल चौधरी थे। जेपी कंपनी को बांध के पीछे जमा हुये सारे मलबे के निस्तारण की विस्तृत योजना बना कर देनी थी। किन्तु बांध कंपनी ने 16 जुलाई को जवाब दाखिल किया। जिसे 30 अप्रैल के आदेश से तीन हफ्ते के अंदर दाखिल करना था। यह तरीका था समय टालने का। अब सब मलबा बारिश में बह कर नदी में ही जा रहा है। चूंकि कंपनी बांध के गेट खोल देती है और मलबा पानी के साथ नदी में जा रहा है। साथ ही ट्रकों से भी मलबा पीछे से लाकर बांध के आगे डाला है। कई ग्रामीणों ने इसका विरोध भी किया तो कभी रोका। पर कब तक? फोटो यहंा देखें जा सकते है।

उत्तराखंड में मानसून शुरू होते ही अलकनंदा नदी पर हेमकुंड साहेब जाने वाला गोविन्द घाट स्थित नया पुल भी 14 जुलाई 2014 को बह गया। जयप्रकाश कंपनी विष्णुप्रयाग बांध के गेट खोलकर उपर का मलबा आसानी से बहा देती है। और अब तो हद हो गई की उपर इकट्ठा मलबा नीचे बांध के आगे डाल रही है। आश्चर्य की बात है कि यह सब 20 जुलाई से तेज टीवी, आज तक आदि कई चैनलों में आया, दैनिक अमर उजाला में भी यह सब आया। किन्तु प्रशासन ने को कोई खबर नही हो पाई। ना प्रशासन ने कोई कदम उठाया।
प्रश्न ये है कि नदी के स्वास्थ्य का क्या होगा? बाँध से ऊपर जून 2013 में जो मलबा इकठ्ठा हुआ था उसके चलते बाँध कंपनी ने मात्र सुरंगों के पास वाला हिस्सा जरूर खाली किया और शेष ऐसे ही छोड़ दिया। ये बहुत चालाकी की गई चूँकि मानसून में तेज बारिश में बाकी का मलबा नीचे आता है और 2014 के मानसून में कंपनी ने बांध के गेट खोलकर मलबा आसानी से बहा दिया। इससे नदी का तल ऊँचा उठ रहा है जिससे नदी का फैलाव बढ़ने की संभावना है। चूँकि वर्षा के अलावा अन्य मौसम में बाँध कंपनी नदी के पानी को सुरंगों में डाल देती है इसीलिए उसको नदी के तल के ऊँचा उठने की कोई परवाह नहीं। किन्तु अलकनंदा का अपना स्वास्थ्य पूरी तरह से ख़राब हो गया है विष्णुप्रयाग जविप के पीछे खीरो घाटी से मलबा आने का भी रास्ता खुल गया है।

ऐसा ही सीमा सड़क संगठन ने किया। 30 अप्रैल को राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने उसको भी नोटिस दिया था। नदी की बर्बादी में सीमा सड़क संगठन यानि बीआरओ का भी बहुत बड़ा हाथ है। क्योंकि तेजी से सड़क बनाने के कारण ही नहीं बीआरओ हमेशा ही सड़क का मलबा नीचे की ओर डाल देता है फिर चाहे लोगों के खेतों में जाये या नदी में जाये। इससे नदी तल पर बहुत फर्क पड़ता है। पांडुकेश्वर की दलित बस्ती का भविष्य भी अनिश्चित ही है।

चमोली प्रशासन को इस पर तुरंत ध्यान देना चाहिये। हम लोगो व पर्यावरण के पक्ष में जेपी ऐसोसियेट से भी अपील करते है की वो ऐसा करना बंद करें। उनकी जिम्मेदारी उन लोगो के प्रति भी है जहंा उनकी परियोजना है।

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का 17 जुलाई का आदेश यहंा देखा जा सकता है।
http://www.greentribunal.gov.in/orderinpdf/322-2013%28OA%29_17Jul2014.pdf

विमलभाई          आलोक पंवार


















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