Friday 30 August 2013

प्रैस विज्ञप्ति 30-8-2013

अब दूसरी तबाही की तैयारी रोको

 

उत्तराखंड में मानसून के आरंभ में ही जो नुकसान हुआ है उसमें बांधों की बड़ी भूमिका है। राजय सरकार ने लगातार बांधो में हो रहे पर्यावरणीय मानको की अनदेखी की है। जिसका परिणाम है कि इस आपदा में बांधों के कारण नुकसान की मात्रा काफी बड़ी। राज्य सरकार भविष्य में यह गलती ना दोहराये और बांध कंपनियों को उनके दोषों की  सजा मिले तभी उत्तराखंड का पर्यावरण और लोग सुरक्षित रह पायेंगे। हाल की बाढ़ में ये बांध असमय के बम साबित हुए है। टाईम बम का तो समय निश्चित होता है। किन्तु इन बांधों का कोई समय नहीं होता तबाही लाने के लिए।  

16-17 जून की रात को बद्रीनाथ जी के नीचे अलकनंदागंगा पर बना जेपी कंपनी का बांध, दरवाज़े ना खोलने के कारण टूटा फिर नदी ने बांध के नीचे के क्षेत्र में भयंकर तबाही मचाई। लामबगड़, विनायक चट्टी, पाण्डुकेश्वर, गोविन्दघाट, पिनोला घाट आदि गांवों में मकानों, खेती, वन और गोविंद घाट के पुल के बहने से जो नुकसान हुआ उसका मुख्य कारण था समय रहते जयप्रकाश कम्पनी द्वारा विष्णुप्रयाग बांध के दरवाजे ना खोलना।

विष्णुप्रयाग बांध से कभी ग्रामीणों की आवश्यकता के लिए पानी तक नहीं छोड़ा जाता था। 2012 के मानसून में इस परियोजना के कारण आई तबाही में लामबगड़ गांव के बाजार की दुकाने बह गई थी। जे.पी. कंपनी ने मुआवज़ा नही दिया। विष्णुप्रयाग बांध की सुरंग के उपर चांई व थैंग गांव 2007 में धंस गये जिसके लगभग 30 परिवार आज भी बिना पुर्नवास के भटक रहे हैं। 

इसी बांध के उपर जी.एम.आर. का अलकनंदा-बद्रीनाथ जविप (300 मेगावाट) प्रस्तावित है जिसके लिए वनभूमि का राज्य सरकार के वन विभाग ने 19 जुलाई तक हस्तांतरित नहीं किया था किन्तु वन कटान का काम द्रुतगति से चालू हो गया था। वो पेड़ व मशीनरी अलकनंदागंगा में बहे। जिसने नीचे के क्षेत्र में तबाही लाने में बड़ी भूमिका अदा की।

इसी नदी में विष्णुप्रयाग बांध से लगभग 200 कि.मी. नीचे, भागीरथीगंगा और अलकनंदागंगा के संगम देवप्रयाग से 32 कि.मी. उपर श्रीनगर में लगभग बन चुकी श्रीनगर परियोजना जविप (330 मेगावाट) के मलबे की वजह से बड़ी तबाही हुई। श्रीनगर परियोजना बिना किसी तरह से पर्यावरण स्वीकति को सुधारे या उसमें बदलवायें 200 मेगावाट से 330 मेगावाट और बांध की उंचाई 65 से 95 मीटर कर दी गई। 1985 में 65 मी. बांध के साथ 200 मेगावाट की बांध स्वीकृति मे तमाम खामियंा थी। अनेकों मुकद्दमें उच्चन्यायालय, उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में इन्ही विषयों चालू है। इन सब जगह उठाई गई आशंकायें पूरी तरह से सिद्व हुई जब इस बांध का पांच लाख टन मलबा जिसे बांध के ठीक नीचे बिना सुरक्षा दीवार बनाये डाला गया था, पानी के साथ बह कर 70 घरों आदि में घुस गई। 16-17 जून 2013 में उपर से आ रहे पानी से जलाशय का जलस्तर बढ़ने की परिस्थितियों का फायदा उठाकर श्रीनगर जल विद्युृत परियोजना की निर्माणदायी कम्पनी जी0 वी0 के0 के कुछ अधिकारियों द्वारा धारी देवी मंदिर को अपलिफ्ट करने का अपराधिक षडयंत्र रचा जो कि अगस्त 2013 में प्रस्तावित था। इस दौरान बांध के गेेट जो पहले आधे खुले थे उनको पूरा बंद कर दिया गया जिससे कि बांध की झील का जलस्तर बढ़ गया। बाद में पानी से बांध पर दबाब बड़ने लगा तो बांध को टूटने से बचाने के लिये जी0 वी0 के0 कम्पनी के द्वारा आनन-फानन में नदी तट पर रहने वालों को बिना किसी चेतावनी के दिये बांध के गेटों को लगभग 5 बजे पूरा खोल दिया गया जिससे जलाशय का पानी प्रबल वेग से नीचे की ओर बहा। जिसके कारण जी0 वी0 के0 कम्पनी  द्वारा नदी के तीन तटों पर डम्प की गई मक बही। इससे नदी की मारक क्षमता विनाशकारी बन गई। जिससे श्रीनगर शहर के शक्तिबिहार, लोअर भक्तियाना, चौहान मौहल्ला, गैस गोदाम, खाद्यान्न गोदाम, एस0एस0बी0, आई0टी0आई0, रेशम फार्म, रोडवेज बस अड्डा, नर्सरी रोड, अलकेश्वर मंदिर, ग्राम सभा उफल्डा के फतेहपुर रेती, श्रीयंत्र टापू रिसोर्ट आदि स्थानों की सरकारी/अर्द्धसरकारी/व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक सम्पत्तियंा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई। 

अलकनंदागंगा की सहयोगिनी मंदाकिनी में छोटी से लेकर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं जैसे फाटा-ब्योंग और सिंगोली-भटवाड़ी का भी यही हाल हुआ। बांधों के निर्माण में प्रयुक्त विस्फोटकों, सुरंग और पहाड़ के अंदर बने विद्युतगृह व अन्य निर्माण कार्यों से निकला मलबा हाल की तबाही का बड़ा कारण बना। चूंकि इन सब कार्यो पर किसी भी तरह की कोई निगरानी का गंभीर प्रयास सरकार की ओर से नही हुआ। एक आकलन के अनुसार बांध परियोजनाओं 150 लाख घनमीटर मलबा नदियों में बहा हैं इस मलबें ने पानी की विनाशकारी शक्ति को बढ़ाया है।

विष्णुप्रयाग और श्रीनगर इन दोनों ही परियोजनाओं से हुई बबार्दी के बाद बांध कंपनी के व्यवहार में एक समानता थी। जे.पी. और जी.वी.के. कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी ने आकर लोगों का हाल नहीं पूछा। सरकारी अधिकारियों का भी यही रवैया था। यहंा प्रभावित याचक और सरकार दानी बनी।

ज्ञातव्य है कि मात्र 10 महीने पहले उत्तराखंड में गंगा की दोनो मुख्य धाराओं भागीरथीगंगा की अस्सीगंगा घाटी और अलकनंदागंगा की केदारघाटी में अगस्त और सितंबर महिने 2012 में भयानक तबाही हुई। भगीरथीगंगा में 3 अगस्त 2012 को अस्सी गंगा नदी में बादल फटने के कारण निमार्णाधीन कल्दीगाड व अस्सी गंगा चरण एक व दो जलविद्युत परियोजनाओं ने तबाही मचाई और भागीरथीगंगा में मनेरी भाली चरण दो के कारण बहुत नुकसान हुआ। अस्सीगंगा के गांव बुरी तरह से प्रभावित हुये, छोटे-छोटे रास्ते टूटे, अस्सीगंगा घाटी का पर्यावरण तबाह हुआ जिसकी भरपाई में कई दशक लगेंगे। जिसमें मारे गये मजदूरों का कोई रिकार्ड भी नही मिला। मनेरी भाली चरण दो का जलाशय पहले ही भरा हुआ था और जब पीछे से तेजी से पानी आया तो उत्तरकाशी में जोशियाड़ा और ज्ञानसू को जोड़ने वाला मुख्य बड़ा पुल बहा। बाद में अचानक से बांध के गेट खोले गए, तब नीचे की ओर हजारों क्यूसेक पानी अनेकों पैदल पुलों को अपने साथ बहा ले गये। मनेरी भाली चरण दो के जलाशय के बाईं तरफ जोशियाड़ा और दाई तरफ के ज्ञानसू क्षेत्र की सुरक्षा के लिये बनाई गई दीवारें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। ज्ञात हो कि तथाकथित सुरक्षा दिवारे, बांध का जलाशय भरने के बाद बनाई गई। इन दिवारांे को बनवाने के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था। दिवारे पूरी नही बन पाई थी। इस वर्ष की वर्षा में जोशियाड़ा का सैकड़ो मीटर लम्बा और दसियों मीटर चौड़ा क्षेत्र भागीरथीगंगा में बह गया जिसका कारण काफी हद तक मनेरी भाली चरण दो का जलाशय ही है।

13 सितंबर 2012 को उखीमठ तहसील मुख्यालय के चार किमी के दायरे में एक साथ छः स्थानों पर बादल फटने की घटना से चारों तरफ तबाही मचा दी। यहंा एशियाई विकास बैंक यानि एडीबी द्वारा पोषित कालीगंगा प्रथम, द्वितीय और मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाये बन रही है। इन परियोजनाओं के निमार्ण कार्य के कारण ही अनेक गांवो की स्थिति खराब हुई है।

टिहरी बांध झील में अस्सीगंगा के टूटे बांधों, सारा मलबा जमा है। यह बहुप्रचारित रहा कि टिहरी बांध से बाढ रूकी जो पूर्वतयाः बांधों से हुए नुकसान को ढापने की झूठी कोशिश है। वास्तव में बांध की झील को भरने के लिये 15 से 18 जून की तेज वर्षा से अब तक लगातार झील में पानी रोका गया। केेंद्रिय जल आयोग के नियमों का पालन न करते हुये, बांधों को सही सिद्ध ठहराने के लिये की गई इस कोशिश का नतीज़ा यह है कि आज टिहरी बांध की झील मंे लगातार बढ़ता पानी देवप्रयाग-हरिद्वार-ऋषिकेश और अन्य मैदानी क्षेत्र में बाढ़ काला रहा है और बड़ी बाढ़ का कारण बनने वाला है।

जो बांध टूटे है उन बांध कपंनियों की चिंता है कि कैसे भी बांधों की मरम्मत का काम शुरू किया जाये। वे भी सरकार से आपदा के तहत सैकड़ो करोड़ो रुपयों की मांग कर रही है। जबकि बांध कंपनियों ने सुरक्षा प्रबंधों को की पूर्ण अनदेखी की है। बांधों के खिलाफ लगातार आंदोलन चले है। किन्तु हरबार विकास विरोधी का तगमा देकर और कुछ लोगो को रोजगार देकर विरोध को छल-बल से दबा दिया जाता रहा। आज वहां की बबार्दी पर ये सब ‘‘विकास‘‘ के समर्थक मौन हैं।

हमारी मांग है किः-

अलकनंदा नदी पर बनी 1). विष्णुप्रयाग जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट), 2). श्रीनगर जलविद्युत परियोजना (330 मेगावाट), अस्सी गंगा पर निमार्णाधीन 3). कल्दीगाड जलविद्युत परियोजना व 4). अस्सी गंगा चरण एक 5). अस्सी गंगा चरण दो जलविद्युत परियोजनाओं, भागीरथीगंगा पर बनी 6). मनेरी भाली चरण दो जलविद्युत परियोजनाओं, कालीगंगा पर 7). कालीगंगा चरण प्रथम, 8). कालीगंगा चरण द्वितीय और मद्महेश्वर नदी पर 9).  मद्महेश्वर जलविद्युत परियोजनाओ मंदाकिनी नदी पर 10). फाटा ब्योंग जलविद्युत परियोजना 11). सिंगोली भटवाड़ी जलविद्युत परियोजनां की निर्माता कंपनियों पर उपरोक्त तबाही के लिये राज्य सरकार द्वारा आपराधिक मुकद्दमें कायम किये जाये।

विमलभाई               पूरण सिंह राणा                 हरीश चौहान            प्रेमवल्लभ

Tuesday 27 August 2013

प्रैस नोटः-27-8-2013



                नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश से 
                   गंगा पर कब्जा रुकने की उम्मीद              

उत्तराखंड में जिस तरह तीर्थयात्राओं को पर्यटन और रोमांचकारी पर्यटन में बदला है वो पहाड़ के लिए तो विनाशकारी सिद्व हुआ है बल्कि तीर्थयात्रियों के लिए स्वंय भी बहुत जोखिम भरा सिद्ध हुआ है। जैसे पर्यटक वैसे ही उनके लिए सुविधाजनक रहन-सहन और बाजार-होटल बनते गये जिसके निर्माण में किसी नियम को नहीं देखा गया। अब नैनीताल उच्चन्यायालय के आदेश के बाद उम्मीद है कि नदी किनारे के अंधाधुंध निर्माण रुकेंगे। खासकर आश्रम आदि।

पारिस्थिकी की अनदेखी करके बड़ी-बड़ी सबको आस्था से जोड़कर अपने व्यवयाय को बढ़ाने का तरीका है। गंगा जी ने इस सब को नकारा है। हाल की बाढ़ में पायलट बाबा के आश्रम का बड़ा हिस्सा टूटा जोकि भागीरथी घाटी में उत्तरकाशी से उपर आश्रम को गंगा जी की छाती पर बनाया गया था।
जून की त्रासदी के बाद यह बहस भी उठाने का प्रयास हुआ है की केदारनाथ तक सड़क बनी होती तो सही रहता किन्तु जहां सड़कें थी वहां क्या हाल हुआ है? गंगोत्री-बद्रीनाथ में केदारनाथ जैसी तबाही नहीं हुई। बड़ी सड़कों से ही लोग वहां खूब पहुंचे और वही सड़के टूटने के कारण ही दसियों हजार यात्रियों को फंसे रहना पड़ा उनके बचाव की बारी भी केदारनाथ से सब यात्रियों को निकाल लेने के बाद ही आई। पिछले कुछ सालो से दो लेन की बड़ी सड़को को बनाने के लिये भी बहुत विस्फोटको का प्रयोग किया गया है। इन सड़को का निर्माण खासकर बांधों और पर्यटन के लिये ही किया गया है। इस आदेश के बाद यह रुकने की उम्मीद है।

गंगा किनारे होटलों जैसी सुविधाओं वाले आश्रमों की भरमार हो गई है। प्रश्न है कि क्या सफेद धन से इतना कुछ बन सकता है? यहां दोनों तीर्थनगरियों में कुछ आश्रमों और साधु संतो को छोड़ कर शेष आत्मप्रसार वैभव तथा साधारण गृहस्थ से ज्यादा भोग विलासिता के आडम्बर के साथ गंगा जी को शोकेस में रखकर अपने आश्रम में की श्री वृद्वि में लगे हैं। इस आदेश के बाद यह रुकने की उम्मीद है।

नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेशों में गंगा के किनारों को छोड़ने की 200 मीटर दोनों तरफ बात थी। मैदानो में हरिद्वार, ऋषिकेश आदि में तो सही है पर पहाड़ में 200 मीटर छोड़ना या हटना बहुत ही मुश्किल काम है। पहाड़ में छोटे बाजार जैसे अगस्यमुनि, चंद्रापुरी, नारायणबगड़ आदि स्थानीय छोटे व्यापारियों के जीवनयापन का सहारा है। किन्तु यहां इन आश्रमों की ऐसी कौन सी मजबूरी है की वे गंगा जी किनारों से हटने के बजाय नदी के और अंदर अपने आश्रमों को, ईश्वर की मूर्तियों को बना रहे हैं। यदि आप नदी के रास्ते को छोड़ दें तो गंगा से इतना विनाश भी नहीं होता।

दिल्ली जैसे तथाकथित विकास को रोकने और नये उत्तराखंड के निर्माण के लिये यह आदेश स्वागत योग्य है। किन्तु हमें ध्यान देना होगा की इसके कारण गरीबों की रिहाईश को तोड़कर अमीरों के महलों को ना बचाया जाये। जैसा की दिल्ली में हुआ है। यमुना किनारे 80,000 गरीबों की बस्तियंा तो तोड़ दी गई किन्तु अक्षरधाम, मैट्रो का बड़ा कार्यशाला, खेलगांव जो अब अमीरों के घरों मे तब्दील हुआ, छोड़ दिया गया।

बडे़ हो या छोटे सभी जगह नदी नालों ने फिर से सिद्ध कर दिया था कि उनको नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। आपको नदियों के लिए रास्ता छोड़ना ही होगा। चाहे वो बड़ा-छोटा बांध हो, होटल हो या गुमटी या कोई भी धार्मिक आश्रम। सरकार को तो आज हम सब दोष दे ही रहे थे। किन्तु क्या लोग भी सोचेगें और आश्रमों के मालिक लोग भी गंगा को कब्जियायेगे नही।

विमलभाई                                 पूरण सिंह राणा

Saturday 17 August 2013

Press Note 17-8-2013



हिन्दी प्रैस नोट के लिये कृप्या अंग्रेजी के नीचे देखे

Stop Clearances and comply Supremecourt order

In Uttarakhand, local opposition to dams is a blatant reality. After the recent calamity in Uttarakhand, dams have proven themselves time bombs that can burst at any moment. While a time bomb still has a known time limit, dams and their vulnerability to risks cannot be predicted by available data and studies, especially because they are dependent on erratic and changing weather patterns.
One bitter lesson brought to the fore by the recent calamity in Uttarakhand is that this natural disaster could have done less harm if it weren’t for the human interference in the region. The magnitude of each disaster across the regions was directly proportional to the level of human interference in the areas. The devastation was particularly higher with regards to areas that house HEPs and in places where activities related to HEPs are going on. For instance, areas downstream of big hydroelectric projects in the Ganga valley— such as the Vishnupryag HEP on Alaknanda, the Phata-Buyong HEP, the Singoli-Bhatwari HEP on Mandakini, and the Srinagar HEP on Alaknanda— fared the worst.
The recent judgement and order of the Hon’ble Supreme Court of India in Alaknanda Hydro Power Co. Ltd. vs Anuj Joshi & Ors, which was delivered on 13.08.2013,1 also indicates our stand, that HEPs have lead to greater levels of disaster in the Himalayas.
Today, agitations around the above mentioned HEPs, continue.Around four hundred men and women reached the Sub Divisional Magistrate office in Joshimath from areas several Kilometers away, villages of Lambagar, Pandukeshwer, Govindghat etc. These people are demanding compensation for the damage caused by the Vishnupryag HEP, on the night of June 16th and 17th. In this protest, people shouted slogans against private and public sector companies who put the lives of villagers in danger by building dams.
In Srinagar, agitations continue against the JVK Company, a project proponent of the Srinagar HEP. On the night of 16-17th June, muck from the Srinagar HEP that had been illegally dumped along the river Alaknanda all year, was washed into more than 70 houses, many government offices and educational insititutions.
Matu Jansangthan is directly involved in protecting peoples' rights over on natural resources and theright of Rivers to flow freely in the Ganga and Yamuna valley. As per our knowledge of the struggles we involve against gigantic HEPs, some projects are pending at different stages of environment and forest clearance in the MOEF and in the State of Uttarakhand. These include projects such as the Jhelam-Tamak HEP (128 MW), on the river Dhouliganga; Vishnugad-Peepalkoti HEP (444 MW) on the river Alaknanda; the Devsari HEP (252 MW), on river Pinder; Kotli-Bhel 1 A HEP (95 MW), on river Bhagirathi; and Natwar-Mori (60 MW), on river Tons. In this regards we sent a letter to Ministry of Environment and Forest as well as the State of Uttarakhand on 16 August, 2013 demanding:-
  • We urge the Ministry of Environment and Forest as well as the State of Uttarakhand to comply with the SC judgement and order of the Hon’ble Supreme Court by not granting further environmental clearances or forest clearances to any hydroelectric power projects in the State of Uttarakhand, until further orders.
  • We urge the MoEF that the above mentioned HEPs and others which have inadvertently not been mentioned in this list, should not be granted environment and forest clearance of any stage, this is in compliance with the abovementioned judgement and order of the Hon’ble Supreme Court.
  • We also request the MoEF and GUK to stop other activities related to the above mentioned HEPs and all other HEPs with immediate effect.

Vimalbhai,
Puran Singh Rana, Briharshraj Tadiyal, Dinesh Panwar, Surendra Rawat, Rajendra Singh Negi


Oprating part of the Hon’ble Supreme Court was pleased to direct as follows:
51. We are also deeply concerned with the recent tragedy, which has affected the Char Dham area of Uttarakhand. Wadia Institute of Himalayan Geology (WIG) recorded 350mm of rain on June 15-16, 2013. Snowfall ahead of the cloudburst also has contributed to the floods resulting in the burst on the banks of Chorabari lake near Kedarnath, leading to large scale calamity leading to loss of human lives and property. The adverse effect of the existing projects, projects under construction and proposed, on the environment and ecology calls for a detailed scientific study. Proper Disaster Management Plan, it is seen, is also not in place, resulting in loss of lives and property. In view of the above mentioned circumstances, we are inclined to give following directions:

  1. We direct the MoEF as well as State of Uttarakhand not to grant any further environmental clearance or forest clearance for any hydroelectric power project in the State of Uttarakhand, until further orders.
  2. MoEF is directed to constitute an Expert Body consisting of representatives of the State Government, WII, Central Electricity Authority, Central Water Commission and other expert bodies to make a detailed study as to whether Hydroelectric Power Projects existing and under construction have contributed to the environmental degradation, if so, to what extent and also whether it has contributed to the present tragedy occurred at Uttarakhand in the month of June 2013.
  3. MoEF is directed to examine, as noticed by WII in its report, as to whether the proposed 24 projects are causing significant impact on the biodiversity of Alaknanda and Bhagirath River basins.
  4. The Disaster Management Authority, Uttarakhand would submit a Report to this Court as to whether they had any Disaster Management Plan is in place in the State of Uttarakhand and how effective that plan was for combating the present unprecedented tragedy at Uttarakhand.
  1. Reports would be submitted within a period of three months. Communicate the order to the Central and State Disaster Management Authority, Uttarakhand.
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हिन्दी प्रैस नोटः-
                      स्वीकृतियों पर रोक होः
सर्वाेच्च न्यायालय के आदेश का पालन करों

उत्तराखंड में बड़े बांधों का स्थानीय स्तर विरोध एक वास्ताविकता है। हाल ही में आई आपदा में बांध बम साबित हुए हैं जो कभी भी फट सकते हैं। टाईम बम का समय तो निश्चित होता है किन्तु बांधों को आकड़ों और अध्ययनों के आधार पर सही सिद्ध नहीं किया जा सकता। चूंकि बांध बदलते मौसम व हिमालयी परिस्थियों पर टिके हैं जिसके बारे में आकलन असंभव है।

उत्तराखंड में आई ताज़ा आपदा ने यह सबक दिया है कि प्राकृतिक आपदा का स्तर कम हो सकता था यदि क्षेत्र में मानव का हस्तक्षेप कम होता। हर आपदा का स्तर मानव हस्तक्षेप के अनुपात में बढ़ा हुआ दिखाई देता है। जहां बांध बने हैं] बन रहे हैं वहां त्रास्दी का स्तर खासतौर पर बढ़ा हुआ दिखाई देता है। उदाहरण के लिए गंगा घाटी में बड़े बांधों के नीचले क्षेत्रों जैसे- अलकनंदानदी पर विष्णुप्रयाग] मंदाकिनीनदी पर फाटा-ब्यांेग और संगोली-भटवाड़ी और अलकनंदानदी पर देवप्रयाग के पास श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के कारण तबाही आई।

अलकनंदा पावर कंपनी लिमिटेड बनाम अनुज जोशी व अन्य के मुकद्दमें में 13 अगस्त को माननीय सर्वोच्य न्यायालय का निर्णय और आदेश हमारे पक्ष को मज़बूत करता है कि बांधों ने आपदा के स्तर को बढ़ाने में बढ़ी भूमिका अदा की है। पूरा आदेश यहंा देखा जा सकता है।

आज उपर बताये बांध क्षेत्रों में प्रदर्शन जारी है। लगभग 400 महिला पुरूषों ने 16 अगस्त को उपजिलाधिकारी के दफ्तर] जोशीमठ में प्रदर्शन किया। विष्णुप्रयाग बांध के नीचे के गांवों लामबगड़] पाण्डुकेश्वर] गोविंदघाट आदि से दसियों कि0मी0 दूर से पहुंचे लोगों ने 16-17 जून की रात्रि को बांध के कारण हुई बबार्दी के मुआवज़े की मांग की। प्रदर्शन में लोग बांध कंपनियों के खिलाफ नारे लगा रहे थे जिनके कारण गांव के गांव आज खतरे में पड़ गये हैं।
श्रीनगर में] श्रीनगर जलविद्युत परियोजना की निर्माता जीवीके कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन जारी है। 16-17 जून की रात्रि इस बांध की जो मक गैरकानूनी रूप से बांध के नीचे जहां-तहां डाली हुई थी वो बाढ़ के पानी के साथ बह कर नीचे के लगभग 70 मकान व अन्य सरकारी और गैर सरकारी दफ्तरों तथा शिक्षा संस्थान कई फुट मिट्टी में दब गये।
माटू जनसंगठन सीधे रूप में गंगा व यमुना नदी घाटियों में प्राकृतिक संसाधनों पर लोगों के हकों के सरंक्षण व नदियों की अविरलता के लिये कार्य कर रहा है। हमारी जानकारी के अनुसार हमारे संघर्ष क्षेत्रों में कुछ बांध परियोजनायें केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार के पास स्वीकृति के लिये पड़ी है। इनमें से कुछ है झेलम-तमक 128 मे-वा- धौली गंगा पर] विष्णुप्रयाग पीपल कोटी 444 मेगावाट अनकनंदा पर] देवसारी 252 मेगावाट पिंडर पर] भागीरथी पर कोटली&भेल चरण एक अ 95 मे-वा- और टाैंस पर नटवार-मोरी 60 मेगावाट। इस संदर्भ में हमने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार को 16 अगस्त को पत्र भेजा है। जिसमें निम्नलिखित मांग की गई हैंः-

  • हम केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार से निवेदन करते हैं कि इस आदेश का पालन करें।
  • हम केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार से निवेदन करते हैं कि जो इस लिस्ट में नहीं आ पाये हैं उनको भी किसी भी स्तर की स्वीकृति न दी जाये। यह उपर में दिये माननीय सर्वोच्य न्यायालय का निर्णय और आदेश की पालन होगी।
  • हम केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड सरकार से यह भी निवेदन करते हैं कि इन बांधों से संबंधित व अन्य बांधों से संबंधित कार्य भी तुरंत प्रभाव से रोक दिये जायें।

विमलभाई

पूरणसिंह राणा] बृहर्षराज तड़ियाल] दिनेश पंवार] सुरेन्द्र रावत] राजेन्द्र सिंह नेगी



माननीय सर्वाेच्च न्यायालय के निर्णय का आदेश वाला हिस्साः-

51. हम हाल में हुई तबाही के विषय में भी बहुत चिंतित हैं, जिसके कारण उत्तराखंड का चार धाम क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियौलजी ने जून 15-16, 2013 के बीच क्षेत्र में 350 मि.मी. बारिश दर्ज की। बादल फटने से पहले हुई बर्फबारी के कारण भी नदी में पानी का स्तर बढ़ गया, जिससे केदारनाथ के पास चोराबड़ी झील के किनारे टूट गए, और इतने बड़े पैमाने पर लोगों की जान माल की क्षति हुई।
पहले से मौजूद, निर्माणाधीन और प्रस्तावित परियोजनाओं के क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले संभावित नकारात्मक प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है। हम देख रहे हैं कि कोई उचित आपदा प्रबंधन योजना भी लागू नहीं की गई है, जिसके कारण जीवन और संपत्ति का नुक्सान हुआ। इस स्थिति को मद्देनज़र रखते हुए, हम निम्नलिखित निर्देश देते हैं -

1- हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ साथ उत्तराखंड राज्य को आदेश देते हैं] कि वे इसके अगले आदेश तक] उत्तराखंड में किसी भी जल विद्युत परियोजना के लिए पर्यावरणीय या वन स्वीकृति न दें।
2- पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया जाता है कि वे एक विशेषज्ञ दल का गठन करे] जिसमें राज्य सरकार] डब्ल्यूआईआई] केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण] केन्द्रीय जल आयोग और अन्य विशेषज्ञ सस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हों। यह दल पहले से मौजूद और निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजनाओं का आकलन करे कि क्या उनके कारण पर्यावरणीय क्षति हुई है कि नहीं] और यदि हां] तो इस क्षति की जून 2013 में उत्तराखंड में हुई तबाही में किस हद तक भूमिका रही।
3डब्ल्यूआईआई की रिपोर्ट के अनुसार] अलकनंदा और भागीरथी नदी घाटियों में प्रस्तावित 24 परियोजनाओं के कारण वहां की जैवविविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं। पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया जाता है कि वह इस दावे की जांच करे।
4 उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन प्राधिकरण इस न्यायालय में अपनी रिपोर्ट पेश करेगा कि क्या उत्तराखंड राज्य में कोई आपदा प्रबंधन योजना लागू की गई है या नहीं] और यदि है तो वह वर्तमान अभूतपूर्व त्रासदी से जूझने के लिए कितनी सक्षम है।

1 Full text of the judgment delivered by the Bench comprising Hon’ble Justice K.S. Radhakrishnan and Hon’ble Justice Dipak Misra is available at: http://courtnic.nic.in/supremecourt/casestatus_new/caseno_new_alt.asp.