Tuesday 27 August 2013

प्रैस नोटः-27-8-2013



                नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेश से 
                   गंगा पर कब्जा रुकने की उम्मीद              

उत्तराखंड में जिस तरह तीर्थयात्राओं को पर्यटन और रोमांचकारी पर्यटन में बदला है वो पहाड़ के लिए तो विनाशकारी सिद्व हुआ है बल्कि तीर्थयात्रियों के लिए स्वंय भी बहुत जोखिम भरा सिद्ध हुआ है। जैसे पर्यटक वैसे ही उनके लिए सुविधाजनक रहन-सहन और बाजार-होटल बनते गये जिसके निर्माण में किसी नियम को नहीं देखा गया। अब नैनीताल उच्चन्यायालय के आदेश के बाद उम्मीद है कि नदी किनारे के अंधाधुंध निर्माण रुकेंगे। खासकर आश्रम आदि।

पारिस्थिकी की अनदेखी करके बड़ी-बड़ी सबको आस्था से जोड़कर अपने व्यवयाय को बढ़ाने का तरीका है। गंगा जी ने इस सब को नकारा है। हाल की बाढ़ में पायलट बाबा के आश्रम का बड़ा हिस्सा टूटा जोकि भागीरथी घाटी में उत्तरकाशी से उपर आश्रम को गंगा जी की छाती पर बनाया गया था।
जून की त्रासदी के बाद यह बहस भी उठाने का प्रयास हुआ है की केदारनाथ तक सड़क बनी होती तो सही रहता किन्तु जहां सड़कें थी वहां क्या हाल हुआ है? गंगोत्री-बद्रीनाथ में केदारनाथ जैसी तबाही नहीं हुई। बड़ी सड़कों से ही लोग वहां खूब पहुंचे और वही सड़के टूटने के कारण ही दसियों हजार यात्रियों को फंसे रहना पड़ा उनके बचाव की बारी भी केदारनाथ से सब यात्रियों को निकाल लेने के बाद ही आई। पिछले कुछ सालो से दो लेन की बड़ी सड़को को बनाने के लिये भी बहुत विस्फोटको का प्रयोग किया गया है। इन सड़को का निर्माण खासकर बांधों और पर्यटन के लिये ही किया गया है। इस आदेश के बाद यह रुकने की उम्मीद है।

गंगा किनारे होटलों जैसी सुविधाओं वाले आश्रमों की भरमार हो गई है। प्रश्न है कि क्या सफेद धन से इतना कुछ बन सकता है? यहां दोनों तीर्थनगरियों में कुछ आश्रमों और साधु संतो को छोड़ कर शेष आत्मप्रसार वैभव तथा साधारण गृहस्थ से ज्यादा भोग विलासिता के आडम्बर के साथ गंगा जी को शोकेस में रखकर अपने आश्रम में की श्री वृद्वि में लगे हैं। इस आदेश के बाद यह रुकने की उम्मीद है।

नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेशों में गंगा के किनारों को छोड़ने की 200 मीटर दोनों तरफ बात थी। मैदानो में हरिद्वार, ऋषिकेश आदि में तो सही है पर पहाड़ में 200 मीटर छोड़ना या हटना बहुत ही मुश्किल काम है। पहाड़ में छोटे बाजार जैसे अगस्यमुनि, चंद्रापुरी, नारायणबगड़ आदि स्थानीय छोटे व्यापारियों के जीवनयापन का सहारा है। किन्तु यहां इन आश्रमों की ऐसी कौन सी मजबूरी है की वे गंगा जी किनारों से हटने के बजाय नदी के और अंदर अपने आश्रमों को, ईश्वर की मूर्तियों को बना रहे हैं। यदि आप नदी के रास्ते को छोड़ दें तो गंगा से इतना विनाश भी नहीं होता।

दिल्ली जैसे तथाकथित विकास को रोकने और नये उत्तराखंड के निर्माण के लिये यह आदेश स्वागत योग्य है। किन्तु हमें ध्यान देना होगा की इसके कारण गरीबों की रिहाईश को तोड़कर अमीरों के महलों को ना बचाया जाये। जैसा की दिल्ली में हुआ है। यमुना किनारे 80,000 गरीबों की बस्तियंा तो तोड़ दी गई किन्तु अक्षरधाम, मैट्रो का बड़ा कार्यशाला, खेलगांव जो अब अमीरों के घरों मे तब्दील हुआ, छोड़ दिया गया।

बडे़ हो या छोटे सभी जगह नदी नालों ने फिर से सिद्ध कर दिया था कि उनको नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है। आपको नदियों के लिए रास्ता छोड़ना ही होगा। चाहे वो बड़ा-छोटा बांध हो, होटल हो या गुमटी या कोई भी धार्मिक आश्रम। सरकार को तो आज हम सब दोष दे ही रहे थे। किन्तु क्या लोग भी सोचेगें और आश्रमों के मालिक लोग भी गंगा को कब्जियायेगे नही।

विमलभाई                                 पूरण सिंह राणा

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