Sunday 20 January 2013

प्रैस विज्ञप्ति 20.1.2013


      भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन
                                            देवाल, जिला चमोली, उत्तराखंड
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                     घाटी में पिंडरगंगा चिरंजीवी दिवस मनाया गया


पिंडरगंगा को अविरल बहने दो-हमें सुरक्षित रहने दो, उर्जा जरुरत से नही इंकार, विनाशकारी परियोजना नही स्वीकार, पिंडरगंगगा चिरंजीव रहे के नारों के साथ पिडंरगंगा चिरंजीवी दिवस की रैली निकाली गयी। देवाल के पिंडरगंगा के पंचप्रयाग से जलकलश लिया गया और रैली वहंा से पूरे देवाल बाजार में निकाली गई।

आज ही के दिन एक वर्ष पूर्व 20 जनवरी 2012 को चेपड़ो गंाव में धोखे से देवसारी बांध के लिये पर्यावरणीय जनसुनवाई पूरी की गई थी। भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन ने तय किया था कि इस दिन को ’’पिडंरगंगा चिरंजीवी दिवस’’ के रुप में मनाया जाये।

विभिन्न गांवो से पहुचे महिला-पुरुषों ने पिंडरगंगा को चिरंजीव बहते रहने देने का उद्घोष करते हुये बांध को नकारा। विभिन्न वक्ताओं दिनेश मिश्रा, मदन मिश्रा, महीपतसिंह कठैत, पुष्कर सिंह, शोभनसिंह खत्री, नर्बदादेवी, के0डी0मिश्रा, मुन्नीदेवी, देवनराम, महेशराम, रामचंद्र, जशोदा देवी भूपेनसिंह रावत, बृजमोहनशाह आदि ने मुख्यतः कहा कि:-

पिंडर गंगा हमारे लिये है जीवन, संस्कृति, सभ्यता, रोजगार का स्थायी साधन, घाटी का सौंद्रर्य। यह हमारी धार्मिक आस्था का केन्द्र बिन्दु और संसार भर में पूज्य है। नंदादेवी की राजजात यात्रा मार्ग पिंडरगंगा के किनारे ही है। अभी राष्टीय नदी गंगा जी की यही एक मात्र सहायिका है जो कि निर्बाध बह रही है। इसी सुंदर घाटी में बांधों की कतार लगने वाली है जिसका घाटी के लोगों ने कड़ा विरोध किया है। जनता के संघर्ष का ही परिणाम था कि 3 बार जनसुनवायी हुयी और तीनो बार घाटी ने बांध को नकारा और कम्पनी की पोल खुल गयी। प्रशासन की मिली भगत से चेपड़ो गांव में बैरीकेट लगाकर जनसुनवाई का नाटक किया गया। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने कम्पनी का साथ दिया और जनता से डर कर बिना लोगों का विरोध सुने बिना ही भाग गये।          
20 जनवरी, 2011 से आज तक  बांध कम्पनी के साथ तू डाल डाल मैं पात पात का खेल चल रहा है। पर्यावरण मंत्रालय ने अभी बांध की स्वीकृति नही दी। वन स्वीकृति के लिये आवश्यक कागजात भी जनता के सामने नही रखे। इसके बावजूद भी बांधों को लादने की कोशिशें जारी है। बांध कम्पनी की कोशिश यही रही कि किसी भी तरह से बिना किसी स्वीकृति के ही बांध के काम को आगे बढ़ाया जाय। जिसके लिये कानूनों का नीतियों का उलंघन, थोड़े पैसों का लालच देना और दलाल खड़े करवाना ये इनकी कारगर नीतियां हैं।
सत्य यही है कि 2009 से आज तक बांध स्वीकृति को हमने रोककर रखा है। जिसमें घाटी के गांव-गांव के मजदूर-किसानों खासकर बहनों के संघर्ष की हिस्सेदारी रही है।बांध के लिये वन स्वीकृति की कोशिशें बांध कंपनी कर रही है। चूंकि पर्यावरण स्वीकृति, वन स्वीकृति के बाद ही मिल पायेगी। बांध कंपनी की कोशिश यह भी है कि वो वन स्वीकृति के लिये आवश्यक कागजातों को सार्वजनिक ना करे। हमने इस बात को पकड़ा तो पर्यावरण मंत्रालय की वन समिति ने बांध कम्पनी से कागजात को वेबसाइट पर रखने को कहा। यह खेल कई बार चला किन्तु किन्ही दबावों के चलते 22 दिसम्बर 2012 को संपन्न वन समिति की बैठक में देवसारी बांध का विषय लाया गया। किन्तु अभी वन स्वीकृति नही हुई है।



ज्ञातव्य है कि बांध के लिए आवश्यक हैः- 1-पर्यावरण स्वीकृति, 2-वन स्वीकृति चरण-एक 3-वन स्वीकृति चरण-दो  4-राज्य सरकार की वन स्वीकृति आदि स्वीकृतियंा बांध कपंनी को अभी नही मिली हैे। जिनके बिना बांध नही बन सकता है।

22 दिसंबर 2012 को वन सलाहकार समिति ने कहा कि वो चतुर्वेदी समिति की रिर्पोट के बाद ही बांध कपंनी के प्रस्ताव पर विचार करेगी। सरकार ने राष्ट्रीय नदी गंगा व उसकी सहायक नदियों में लगातार बहने वाला पानी कितना हो यह तय करने के लिये योजना आयोग के सदस्य श्रीमान बी. के. चतुर्वेदी की अध्यक्षता में विभिन्न मंत्रालयों की एक समिति बनाई है जिसकी रिपोर्ट मार्च 2013 में आने की संभावना है।

पूरे उत्तराखंड में बांधों से विस्थापन, स्थायी रोजगार का छिनना, पानी की समस्या, सब जारी है। चमोली में ही विष्णुगाड बांध से विस्थापित 30 परिवारों का पुनर्वास नही हो पाया है। इसलिये जीवन भर रोज रोज की समस्यायें परेशानियां हम भी क्यों झेले? क्यों नही जन आधारित घराट जैसी बिजली परियोजनाये बने जिसमें स्थानीय लोगो को स्थायी रोजगार भी मिले और हमारी पिंडरगंगा घाटी भी सुरक्षित रहे। चन्द लोगों के अपने लालच के लिए पिण्ड़र की जनता अपनी घाटी की तबाही नही देख सकती। 
 
भूस्वामी संघर्ष समिति व माटू जनसंगठन की ओर से

बलवंत आगरी                मुन्नी देवी            मदन मिश्रा             विमलभाई

        

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