Tuesday 29 May 2012

Press Note: 30-05-12 Protest against Vishunugad-Pipalkoti HEP: condemned Prof. G.D. Agarwal arrest by Uttarakhand Govt.


 In proposed Vishnugad-Pipalkoti HEP (444MW), on National River Alaknandaganga, Uttarakhand people protested against dam and condemned Prof. G.D. Agarwal arrest  by Uttarakhand Govt.
पुनर्वास असंभव है: बुरे प्रभावों को कब तक छुपाओंगे?
बांध नही स्थायी विकास चाहिये! नदियों को अविरल बहने दो! नदी हमारी कागज तुम्हारा विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना में पुनर्वास असंभव है। बुरे प्रभावों को छुपाकर नही रखा जा सकता है। इन नारों के साथ आज बांधकालोनी के सियासेंण पुल में धरना दिया गया। साथ ही श्री जी0 डी0 अग्रवाल की गिरफ्तारी की भी भत्र्सना की गई।

उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदागंगा पर प्रस्तावित विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना पर्यावरणीय जनसुनवाई के समय से ही विवादो के घेरे में है। 18 अक्तूबर 2006 की जनसुनवाई विस्थापितों को सही जानकारी ना देने के कारण स्थगित हुई थी। बाद में 9 जनवरी को दुबारा भी वही विरोध हुआ पर तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने रिर्पोट में सब सही दिखा दिया। माटू जनसंगठन ने पहली बार क्षेत्र में इस बात की जानकारी दी की इसमें विश्व बैंक भी शामिल है। विश्व बैंक ने परियोजना के कागजातों में कमियंा देखकर कुछ नये अध्ययन जरुर करवाये थे। विश्व बैंक ने भी एक वर्ष तक विचार नही किया था इस बांध को कर्ज देने के लिये। बाद मे उसने ठेकेदार लाॅबी को खुश किया और ठेको के सपने दिखाकर विरोध की आवाज़ को दबाने का प्रयास किया। जो आज भी जारी है। किन्तु विश्व बैंक का कर्ज अभी तक बांध कंपनी को नही मिला है।

हमारा विष्णुगाड-पीपलकोटी जल-विद्युत परियोजना से विरोध इसके दीर्घकालीन पर्यावरणीय कुप्रभावों और पुनर्वास की अनिश्चिितता के कारण है। बांध निर्माता कंपनी टिहरी जलविद्युत निगम {टीएचडीसी} का अतीत बहुत बुरा है। हम टिहरी बांध के विस्थापितों की दुर्दशा देख रहे है। यदि उनका पुनर्वास आज तक नही हो पाया तो क्या गारंटी है कि यहंा पर पुनर्वास होगा। सुप्रीम कोर्ट में यदि एन0 डी0 जुयाल एंव शेखर सिंह की याचिका नही होती, जिसमें माटू जनसंगठन के साथी मदद कर रहे है, तो जितना पुनर्वास हुआ है शायद वह भी नही हो पाता। नवम्बर में सुप्रीम कोर्ट के कारण से ही राज्य सरकार को टिहरी बांध विस्थापितों को 102.66 करोड़ रुपये मिले है। वरना तो 2005 में ही टीएचडीसी ने पूर्ण पुनर्वास घोषित कर दिया था। टिहरी बांध में आजतक जलाशय पूर्ण पुनर्वास ना होने के कारण नही भरा गया है।

यहंा भी वैसी ही स्थिति है। पिछले 8 सालांे से हम विष्णुगाड-पीपलकोटी जल-विद्युत परियोजना के बुरे प्रभावो को झेल रहे है। हमने बहुत सारे पत्र भी लिखे। 15 मार्च, 2012 को तत्कालीन जिलाधिकारी महोदय हमारे गांव आये थे। उन्हे हमनें बांध के कारण हुयें नुकसानों जैसे मकानों की दरारंे व पानी के सूखे स्तोत्र दिखाये थे। हमे उम्मीद बनी थी की वो हमारी समस्या का हल करेगें। किन्तु सारी बात बांध कंपनी ने घुमा दी। जो चर्चा भी नही हुई थी वो 15 मार्च, 2012 की बैठक की रिर्पोट में लिखी गई। इसमें यह भी साफ लिखा है कि आपदा प्रभावितों के लिये भी जमीन नही है तो बांध विस्थापितों को जमीन नही दी जा सकती। 28 मार्च को तत्कालीन जिलाधिकारी ने टीएचडीसी को पत्र में लिखा है कि वैकल्पिक टनल के डिफ्ट के लिये व्यवधान उत्पन्न करने वालोे पर वैधानिक कार्यवाही की जाये। आश्र्चय है कि तत्कालीन जिलाधिकारी जी बांध कंपनी को ऐसा लिखकर दे रहे है। पर हमारे नुकसान की भरपाई 8 वर्षो से ना करने के बारे में टीएचडीसी पर कोई कार्यवाही नही? प्रशासन को तो स्थानीय लोगो की मदद करनी ही चाहिये। ऐसा क्यों नही हो रहा? यह गंभीर विषय है।
हमने बांधों के बुरे प्रभाव इसी जिले में बन रही परियोजनाओं में देखे है। हम अपनी अलकनंदागंगा को स्वतंत्र देखना चाहते है। जिसके लिये हमारी भरसक कोशिश रहेगी। इसीलिये बांध कंपनी हमारे नुकसानों की भरपाई नही कर रही है। इस तरह दवाब बनाकर वो चाहते है कि हम बांध के लिये रजामंदी दे। जिसके लिये हम तैयार नही है।

धरना देने के बाद गोपेश्वर मे जिला कार्यालय जाकर जिलाधिकारी महोदय को ज्ञापन दिया व चर्चा की। ज्ञापन में मांग की गई हैः-

  • हमारे आजतक के हुये नुकसानों की भरपाई टीएचडीसी द्वारा की जाये।
  • यदि टीएचडीसी व सरकार हमारे विरोध के बाद बांध बनाती भी है तो टनल का अलाईमेन्ट बदला जाये।
  • टीएचडीसी व सरकार इस बात की लिखित गांरटी दे कि परियोजना  से हमारे जीवन व आजीविका पर किसी भी तरह की धूल, विस्फोटो के कंपन, जलस्त्रोतांे का सूखना जैसे असर नही पड़ेगे।

जो बांध कंपनी थोड़ा सा मुआवजा तक नही दे सकती वो विस्थापितों को पुनर्वास क्या देगी? यह बांध समर्थकों को भी याद रखना चाहिये कि यदि बांध बनता है तो टिहरी बांध विस्थापितों की कहानी फिर यहंा दोहराई जायेगी। इसलिये बड़े बांध रुकने ही चाहिये।


नरेन्द्र पोखरियाल                  हर्ष तडियाल                         विमलभाई



Affected Chamoli villagers demand compensation

Residents of various villages in Chamoli district affected by the construction of the Vishnugad-Pipalkoti hydro electric project have demanded that the Tehri Hydro Development Corporation (THDC) provide a written guarantee to the Government to the effect that dust, tremors caused by detonations and drying up of water resources due to work on the project will not affect their lives and livelihood. 

Staging a protest demonstration near Siyasain Bridge in Chamoli, the affected villagers demanded that the THDC should compensate them for the damage they have suffered till date due to the project. If the company and State Government construct the dam ignoring the strong opposition of locals, the alignment of the tunnel should be changed. The villagers also condemned the treatment being meted out by the Government to Swami Gyan Swaroop Sanand who is agitating against large dams on the Ganga and its tributaries. The proposed Vishnugad-Pipalkoti HEP on Alaknanda River has been mired in controversy and elicited strong opposition of the locals since the first environmental public hearing. The villagers allege that the company has continued to conceal relevant information from them which is also one of the reasons why the World Bank has not yet funded the project. The villagers are opposing the project due to the long term environmental damage and uncertainty regarding the rehabilitation of the affected villagers.
“The THDC has a very bad track record. We have seen the anomalies in rehabilitation of those affected by construction of the Tehri Dam. Those affected by construction of the Tehri dam have not yet been fully rehabilitated so we doubt if we will be rehabilitated properly. We have been experiencing the negative repercussions of the Vishnugad-Pipalkoti project for the past eight years and have written several letters to the authorities and approached ministers and bureaucrats repeatedly. However, our grievances have been consistently ignored by the authorities who have continued to favour the interests of the company in stead of ensuring the welfare of the affected people,” said the protesting villagers.

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